HISTORY NOTES IN STORY WAY
bpsc topic- 1773 का रेगुलेटिंग अधिनियम कहानी रूप में

1773 के रेगुलेटिंग ऐक्ट की कहानी शुरू होती हैं, साल 1773 की गर्मियों में, जब लंदन के एक आलीशान महल में ब्रिटिश संसद की एक विशेष बैठक बुलाई गई। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ और ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक चिंतित थे। भारत में कंपनी का शासन अव्यवस्थित था, भ्रष्टाचार चरम पर था, और सबसे बड़ी बात – कंपनी आर्थिक संकट में थी।
इसी बीच, लंदन के टॉवर स्ट्रीट में एक युवा वकील, विलियम, अपने मित्र जॉर्ज से कहता है –
“क्या तुमने सुना? ईस्ट इंडिया कंपनी का दिवाला निकलने वाला है! ब्रिटिश सरकार को इसमें दखल देना ही पड़ेगा।”
जॉर्ज ने जवाब दिया, “बिल्कुल! संसद ने नया कानून लाने की योजना बनाई है, जिससे कंपनी पर सीधा नियंत्रण रखा जा सके।”
इसी तरह की चर्चाएँ पूरे ब्रिटेन में हो रही थीं। उधर, बंगाल में, वॉरेन हेस्टिंग्स, जो कंपनी का नया गवर्नर था, उसे भी इस नए कानून 1773 के रेगुलेटिंग ऐक्ट के बारे में जानकारी मिल चुका था।
सितंबर 1773 – ब्रिटिश संसद ने “1773 का रेगुलेटिंग एक्ट” पास कर दिया। भारत में कंपनी के शासन को नियंत्रित करने के लिए यह पहला बड़ा हस्तक्षेप था। (bpsc प्रारम्भिक परीक्षा)
लकड़ी की बड़ी मेज के चारों ओर बैठे सांसदों ने जब कानून पढ़ा, तो उसमें कुछ महत्वपूर्ण बातें थीं। 1773 के रेगुलेटिंग ऐक्ट से संबंधित महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं:- (यह बातें bpsc प्रारम्भिक परीक्षा के तथ्यात्मक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।)
- गवर्नर-जनरल की नियुक्ति:
बंगाल के गवर्नर को अब “गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल” कहा जाएगा (bpsc प्रारम्भिक परीक्षा)। पहले तीन प्रेसिडेंसी (बंगाल, बॉम्बे, मद्रास) स्वतंत्र रूप से कार्य कर रही थीं, लेकिन अब बंगाल का गवर्नर-जनरल पूरे भारत में सर्वोच्च अधिकारी होगा।
वॉरेन हेस्टिंग्स को इस पद पर नियुक्त किया गया। - गवर्नर-जनरल की काउंसिल:
अब गवर्नर-जनरल के साथ चार लोगों की एक काउंसिल होगी, जो उसके निर्णयों पर निगरानी रखेगी।
लेकिन समस्या यह थी कि काउंसिल के तीन सदस्य हेस्टिंग्स से असहमत रहते थे, जिससे शासन में कई दिक्कतें आईं। - बंबई और मद्रास प्रेसिडेंसी पर नियंत्रण:
अब बॉम्बे और मद्रास को स्वतंत्र रूप से काम करने की बजाय बंगाल के गवर्नर-जनरल के अधीन रहना था।
इससे प्रशासनिक एकता बनी, लेकिन मद्रास और बॉम्बे के अधिकारी इससे नाखुश थे। - ब्रिटिश सरकार की निगरानी:
अब कंपनी की नीतियों पर ब्रिटिश सरकार सीधा नियंत्रण रखेगी। चार्टर एक्ट 1767 के तहत कंपनी को ब्रिटिश सरकार को सालाना 40,000 पाउंड देना पड़ता था, लेकिन अब सरकार ने नियंत्रण और कड़ा कर दिया।
अब ब्रिटिश संसद को कंपनी की आय-व्यय का पूरा ब्योरा देना जरूरी हो गया। - कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना:
पहली बार भारत में 1774 में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना (bpsc प्रारम्भिक परीक्षा प्रश्न) की गई, जिसमें एक चीफ जस्टिस और तीन अन्य जज नियुक्त किए गए।
यह कानून के शासन की ओर पहला कदम था, लेकिन भारतीयों पर अंग्रेजी कानून थोपने से कई विवाद भी हुए। - भ्रष्टाचार पर नियंत्रण:
कंपनी के अधिकारियों को भ्रष्टाचार से रोकने के लिए नए सख्त नियम बनाए गए।
लेकिन व्यावहारिक रूप से, भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।

भारत में असर
बंगाल के नए गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ने काउंसिल के विरोध के बावजूद कई बड़े फैसले लिए। लेकिन उसके कार्यकाल में प्रशासनिक संघर्ष बढ़ गया।
कलकत्ता सुप्रीम कोर्ट ने भारतीयों पर अंग्रेजी कानून लागू करना शुरू कर दिया, जिससे स्थानीय जमींदारों और व्यापारियों में असंतोष बढ़ा।
1775 में, राजा नंदकुमार को भ्रष्टाचार के आरोप में फांसी दे दी गई, जिससे यह साफ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट को भारतीयों पर नियंत्रण रखने का हथियार बना लिया गया था।
ब्रिटिश संसद में बहस
1777 में, लंदन में सांसद विलियम पिट ने इस कानून पर टिप्पणी की –
“यह अधिनियम कंपनी के प्रशासन को सुधारने का पहला प्रयास था, लेकिन इससे भारत में संघर्ष बढ़ा है। हमें और सशक्त नियंत्रण की आवश्यकता है।”
इस चर्चा के बाद, ब्रिटिश सरकार ने आगे चलकर 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट बनाया, जिसने भारत में प्रशासन को और बेहतर तरीके से नियंत्रित किया।
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट भारत में ब्रिटिश शासन का पहला बड़ा बदलाव था। यह अधिनियम अंग्रेजों के लिए “नियंत्रण का पहला प्रयास“ था, लेकिन इसमें कई खामियां भी थीं।
इस अधिनियम ने:
- ब्रिटिश सरकार को ईस्ट इंडिया कंपनी पर नियंत्रण करने का अधिकार दिया।
- भारत में गवर्नर-जनरल का पद स्थापित किया।
- मद्रास और बॉम्बे को बंगाल के अधीन कर दिया।
- सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की।
- भ्रष्टाचार रोकने के नियम बनाए।
परंतु, इस कानून से नए संघर्ष और विवाद पैदा हुए, जिससे आगे चलकर ब्रिटिश शासन और भी सख्त होता गया।
कहानी का अंत (1773 regulating act )
विलियम और जॉर्ज लंदन के एक कॉफी हाउस में बैठे हुए थे।
विलियम ने कहा, “कंपनी को बचाने के लिए यह कानून जरूरी था, लेकिन भारत में असली बदलाव अभी बाकी हैं।”
जॉर्ज ने उत्तर दिया, “बिल्कुल! अब भारत पर शासन कंपनी नहीं, बल्कि ब्रिटिश सरकार खुद करना चाहती है।”
और वही हुआ – धीरे-धीरे भारत पर ब्रिटिश सरकार का सीधा शासन बढ़ता गया, जो अंततः 1858 में ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया।
1773 का यह रेगुलेटिंग ऐक्ट भारत में ब्रिटिश शासन को कानूनी रूप दिया, यह इतिहास और polity दोनों विषयों के लिए बाद महत्व का विषय है, इसलिए bpsc परीक्षा की दृष्टि से भी यह एक महत्वपूर्ण टॉपिक बन जाता हैं। हमारा प्रयास 1773 के रेगुलेटिंग ऐक्ट को कहानी के द्वारा प्रस्तुत करके इसे रोचक बनाना हैं जिससे bpsc परीक्षा के दृष्टि के महत्वपूर्ण बिंदुओं को कहानी के द्वारा सरलता से याद करना हैं।
