मौर्यकालीन मूर्तिकला के विशिष्ट लक्षण – विस्तृत अध्ययन

मौर्यकालीन मूर्तिकला के विशिष्ट लक्षण – विस्तृत अध्ययन

मौर्यकालीन मूर्तिकला के विशिष्ट लक्षण – एक विस्तृत अध्ययन

परिचय

          मौर्य काल (321 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण युग था, जिसने न केवल प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से बल्कि कला एवं शिल्पकला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। इस काल की मूर्तिकला में राजकीय, धार्मिक और सामाजिक परंपराओं की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। विशेष रूप से अशोक द्वारा प्रचारित बौद्ध धर्म ने इस काल की मूर्तिकला को अत्यधिक प्रभावित किया।

       इस लेख में हम मौर्यकालीन मूर्तिकला की प्रमुख विशेषताओं को विस्तार से समझेंगे, जिसमें यक्ष-यक्षिणी मूर्तियाँ, अशोक स्तंभ, पशु मूर्तियाँ और उनकी तकनीकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला जाएगा।

मौर्य कालीन मूर्तिकला के प्रमुख लक्षण

1. मौर्यकालीन पालिश (Mauryan Polish)

  • मौर्य मूर्तिकला की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी उत्कृष्ट चमकदार पालिश (Mirror-like Polish) थी।
  • यह पालिश मूर्तियों और स्तंभों को एक धात्विक चमक प्रदान करती थी, जो उन्हें अद्वितीय बनाती थी।
  • प्रमुख उदाहरण: दीदारगंज यक्षिणी, अशोक स्तंभ

2. यक्ष-यक्षिणी मूर्तियाँ

  • मौर्यकाल में लोकदेवताओं की मूर्तियाँ बनाई गईं, जिनमें यक्ष और यक्षिणियों की मूर्तियाँ प्रमुख थीं।
  • ये मूर्तियाँ संपत्ति और समृद्धि की प्रतीक थीं और आम जनता में पूजनीय थीं।
  • प्रमुख उदाहरण:
    • दीदारगंज यक्षिणी (पटना, बिहार)
    • पावईयां का यक्ष (उत्तर प्रदेश)

विशेषता: इन मूर्तियों में भारी आभूषण, विस्तृत वस्त्र और आकर्षक शरीर रचना देखी जा सकती है।

3. अशोक स्तंभ और उसके शीर्ष

  • मौर्य काल के अशोक स्तंभ एकाश्मक (Single Rock Carved) होते थे, जिनमें ऊपरी भाग पर विभिन्न पशुओं की आकृतियाँ उकेरी जाती थीं।
  • इन स्तंभों पर अशोक के धम्म लेख उत्कीर्ण किए गए थे।
  • प्रमुख स्तंभों के शीर्ष भाग में विभिन्न पशु आकृतियाँ देखी जाती हैं:
    • सारनाथ का सिंह शीर्ष – भारत का राष्ट्रीय प्रतीक
    • रामपुरवा का बैल – स्थिरता और शक्ति का प्रतीक
    • सांप नाथ का हाथी – भगवान बुद्ध के जन्म का प्रतीक

विशेषता: इन स्तंभों को भारत की प्रथम भव्य शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।

4. यथार्थवादी और स्वाभाविक शैली

  • मौर्यकालीन मूर्तिकला में शरीर की मांसलता और वास्तविकता पर विशेष ध्यान दिया गया था।
  • मूर्तियों में संवेगों (Emotions) की स्पष्टता झलकती है।
  • जैसे दीदारगंज यक्षिणी की मुद्रा और उसकी सजीवता इसे कला का अद्भुत नमूना बनाती है।

5. गुफा वास्तुकला और मूर्तिकला का संगम

  • मौर्य काल में प्रस्तर मूर्तिकला के साथ-साथ गुफा वास्तुकला का भी विकास हुआ।
  • बराबर और नागार्जुनी गुफाओं की दीवारों पर अत्यधिक चिकनी पालिश की गई थी।
  • इन गुफाओं का उपयोग अजीवक संप्रदाय के संतों द्वारा किया जाता था।

विशेषता: यह गुफाएँ पत्थर पर उत्कीर्णित सबसे पुरानी संरचनाएँ मानी जाती हैं।

मौर्य कालीन मूर्तिकला का सारणीबद्ध विश्लेषण

विशेषताविवरणप्रमुख उदाहरण
मौर्य पालिशपत्थर की सतह पर अत्यंत चिकनी पालिशदीदारगंज यक्षिणी, अशोक स्तंभ,
यक्ष-यक्षिणी मूर्तियाँभारी आभूषणों से युक्त, यथार्थवादी आकृतिचामरग्राहिणी दीदारगंज यक्षणी, वेसनगर यक्षणी
अशोक स्तंभएकाश्मक स्तंभ, शीर्ष पर पशु आकृतियाँसारनाथ सिंह स्तंभ, रामपुरवा बैल
प्राकृतिक अभिव्यक्तिचेहरे पर भावनाओं की स्पष्टतादीदारगंज यक्षिणी
गुफा वास्तुकलादीवारों पर चिकनी पालिशबराबर और नागार्जुनी गुफाएँ

मौर्यकालीन मूर्तिकला का महत्त्व

  1. भारतीय मूर्तिकला की नींव: मौर्य काल ने भारतीय शिल्पकला को एक नई दिशा दी।
  2. धार्मिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव: बौद्ध धर्म के प्रसार में इन मूर्तियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  3. तकनीकी उन्नति: मौर्य काल में एकाश्मक प्रस्तर निर्माण, चिकनी पालिश, एवं धम्म लिपियों का समावेश किया गया।

निष्कर्ष

         मौर्य काल की मूर्तिकला भारतीय कला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस युग की कलाकृतियों ने आगे चलकर शुंग, कुषाण एवं गुप्त काल की मूर्तिकला को प्रभावित किया। चमकदार पालिश, यथार्थवादी प्रतिमाएँ, और भव्य स्तंभों ने इस काल को भारतीय मूर्तिकला का स्वर्ण युग बना दिया।

मौर्य कालीन मूर्तिकला न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि यह प्राचीन भारतीय कारीगरी की उत्कृष्टता को भी दर्शाती है।”

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