भारत का संवैधानिक विकास (1773-1950 तक)

संवैधानिक विकास का प्रस्तुतीकरण

भारत का संवैधानिक विकास (1773-1950 तक)

भारत का संवैधानिक विकास: विश्लेषण (1773-1950)

          भारत का संवैधानिक विकास एक लंबी और जटिल प्रक्रिया रही है, जिसमें कई अधिनियमों (Acts) और सुधारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आलेख में, हम विस्तार से उन सभी अधिनियमों (Acts) और संवैधानिक सुधारों को समझेंगे जो भारत के संविधान की नींव बने।

संवैधानिक विकास की शुरुआत

       भारत में संवैधानिक विकास की नींव अंग्रेजों के आगमन के साथ पड़ी। 1600 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को व्यापार का अधिकार मिला और धीरे-धीरे उसने भारत में प्रशासनिक अधिकार भी प्राप्त कर लिए। लेकिन कंपनी के प्रशासन में अनियमितता और भ्रष्टाचार बढ़ने से ब्रिटिश सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा, जिसके कारण कई कानून और अधिनियम लाए गए।

मुख्य अधिनियम और उनके महत्वपूर्ण प्रावधान

1. रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 (Regulating Act, 1773)

         यह पहला अधिनियम था जिसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन पर नियंत्रण स्थापित किया।

मुख्य प्रावधान:

  • बंगाल के गवर्नर को “गवर्नर-जनरल” बना दिया गया। पहला गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स बने।
  • गवर्नर-जनरल की सहायता के लिए 4 सदस्यीय कार्यकारी परिषद बनाई गई।
  • पहली बार कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई।
  • कंपनी के अधिकारियों पर अनुशासन लाने की कोशिश की गई।

2. पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 (Pitt’s India Act, 1784)

         इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के व्यापार और प्रशासन को अलग-अलग कर दिया।

मुख्य प्रावधान:

  • ब्रिटिश सरकार ने भारत में प्रशासन की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली।
  • बोर्ड ऑफ कंट्रोल” की स्थापना की गई, जो कंपनी के प्रशासन को नियंत्रित करेगा।
  • कंपनी का व्यवसायिक कार्य अलग रखा गया और प्रशासनिक कार्य अलग।
  • गवर्नर-जनरल की शक्ति बढ़ा दी गई।

3. चार्टर एक्ट, 1813 (Charter Act, 1813)

यह अधिनियम भारत में ईसाई मिशनरियों को प्रचार की अनुमति देने के लिए महत्वपूर्ण था।

मुख्य प्रावधान:
  • ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार पर एकाधिकार समाप्त कर दिया गया (सिर्फ चीन के व्यापार और चाय के व्यापार को छोड़कर)।
  • भारतीयों के लिए शिक्षा और धर्म प्रचार को बढ़ावा दिया गया।
  • ब्रिटिश नागरिकों को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी गई।

4. चार्टर एक्ट, 1833 (Charter Act, 1833)

यह अधिनियम भारतीय प्रशासन में एक महत्वपूर्ण सुधार लेकर आया।

मुख्य प्रावधान:
  • गवर्नर-जनरल ऑफ बंगाल को गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया बना दिया गया। पहला गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक बने।
  • भारतीय प्रशासन में एकरूपता लाने की कोशिश की गई।
  • कंपनी का व्यापार पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया और इसे केवल प्रशासनिक कार्यों तक सीमित कर दिया गया।

5. चार्टर एक्ट, 1853 (Charter Act, 1853)

यह अधिनियम ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के प्रशासनिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

मुख्य प्रावधान:
  • लॉर्ड डलहौजी के समय इस अधिनियम को लागू किया गया।
  • पहली बार भारतीय सिविल सेवा (ICS) परीक्षा शुरू की गई।
  • कंपनी के शासन की अवधि को पहली बार अनिश्चितकालीन कर दिया गया।

ब्रिटिश सरकार का प्रत्यक्ष शासन (1858-1947)

6. भारत सरकार अधिनियम, 1858 (Government of India Act, 1858)

1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत पर प्रत्यक्ष शासन स्थापित कर दिया।

मुख्य प्रावधान:
  • ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया।
  • भारत की पूरी सत्ता ब्रिटिश क्राउन को सौंप दी गई।
  • भारत में एक वायसराय नियुक्त किया गया, पहला वायसराय लॉर्ड कैनिंग बने।
  • प्रशासन के लिए इंडियन काउंसिल का गठन किया गया।

7. भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 (Indian Councils Act, 1861)

यह अधिनियम ब्रिटिश सरकार में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए लाया गया था।

मुख्य प्रावधान:
  • पहली बार भारतीयों को वायसराय की कार्यकारी परिषद में नामांकित किया गया
  • प्रांतों को कुछ हद तक स्वायत्तता दी गई।
  • पोर्टफोलियो सिस्टम” लागू किया गया।

8. भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 (Indian Councils Act, 1892)

मुख्य प्रावधान:
  • पहली बार परामर्शदात्री विधायी परिषदों का विस्तार किया गया।
  • अप्रत्यक्ष चुनाव” की व्यवस्था की गई।
  • भारतीयों को प्रशासन में भाग लेने का अधिकार दिया गया।

9. भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 (Morley-Minto Reforms)

मुख्य प्रावधान:
  • पहली बार भारतीयों को केंद्रीय विधायी परिषद में स्थान मिला।
  • संप्रदाय आधारित पृथक निर्वाचन प्रणाली (Separate Electorate) की शुरुआत हुई।
  • मुसलमानों को अलग से चुनाव में प्रतिनिधित्व मिला।

10. भारत सरकार अधिनियम, 1919 (Government of India Act, 1919 – Montagu-Chelmsford Reforms)

यह अधिनियम द्वैध शासन (Dyarchy) की शुरुआत करता है।

मुख्य प्रावधान:
  • प्रांतीय स्तर पर द्वैध शासन (Dyarchy) लागू किया गया।
  • केंद्र में बाईकैमरल लेजिस्लेटिव असेंबली बनाई गई।
  • भारतीयों को प्रशासन में अधिक अधिकार मिले।
  • यह अधिनियम 10 वर्षों के लिए लागू किया गया।

11. भारत सरकार अधिनियम, 1935 (Government of India Act, 1935)

यह भारत के संविधान की नींव माना जाता है।

मुख्य प्रावधान:
  • भारत में संघीय शासन की नींव रखी गई।
  • केंद्र और प्रांतों में पूर्ण स्वायत्तता दी गई।
  • बाईकैमरल (द्विसदनीय) विधायिका का गठन किया गया।
  • गवर्नर-जनरल की शक्तियां बढ़ाई गईं

12. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 (Indian Independence Act, 1947)

यह अधिनियम भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाला कानून था।

मुख्य प्रावधान:
  • भारत और पाकिस्तान को दो अलग-अलग देशों में विभाजित किया गया।
  • ब्रिटिश सत्ता समाप्त हो गई।
  • भारत में पहली बार संविधान सभा ने सरकार चलाई।

संविधान निर्माण (1947-1950)

  • संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अपनाया।
  • 26 जनवरी 1950 को यह लागू हुआ और भारत एक गणराज्य बना।

         भारत का संवैधानिक विकास विभिन्न अधिनियमों के माध्यम से हुआ। प्रत्येक अधिनियम ने भारत के प्रशासन में महत्वपूर्ण बदलाव किए और अंततः 1950 में भारत का संविधान अस्तित्व में आया।